मुसाफिर का पत्र मंजिल के नाम
प्रिय बॉलीवुड,
करोड़ों-अरबों का टर्नओवर और स्टार्डम-ग्लेमर के थिंक टैंक हो तुम ! तुम्हारी ज़मीं चमचमाते खरा सोना है, पर किसी के लिए शान-ओ-शौकत तो किसी के लिए तपता हुआ लोहा भी है! मुझे याद है जब पहली बार बड़े परदे पर चकाचैंध को चूमती नायक-नायिकाएं मेरी आंखों को बेहद पसंद आईं थीं। तब समाज और परिवार की ना-नुकर और भों-सिकुड़ के बावज़ूद मैं तुम्हारी दुनिया में बिना टिकट घुस आई थी। समाज में तन ढकने की धक्कममपेल है, और तुम्हारी दुनिया में खुले बदन की खस्ताहाल ख्वाहिशें ! मेरे जैसी न जाने कितनी स्ट्रगलर्स तुम्हें खुद में समेंट लेने को बेताब थीं ! सौ-करोड़ी क्लब भी बनने लगे थे, और तुम्हारा टर्न-ओवर गैस के भारी-भरकम गुब्बारे की तरह बढ़ता ही जा रहा था। अभिनय और कलाकारी से कहीं बढ़कर फिगर और फेस की बादशाहत सिर उठाने लगी थी।
शुरुआती दौर में किराये के कमरे में कैद रहना, क्रीम-पाउडर खुद करना और बड़े दाम के छोटे कपड़े पहनना हम स्ट्रगलर हीरोइनों की मानो पहचान सी बन गई है। बंबइया अखबारों-मैग्जीनों में आॅडीशन के लिए दिए गए फोन नंबरों पर घंटों लबरियाते हुए खीझ सी होने लगती थी। कभी-कभार किसी से अप्वाइंटमेंट भी मिलता था। ऑटो-रिक्शे भी रकम में रियायत नहीं करते थे, आखिर वे भी तो स्ट्रगलर-स्टार ही हैं ! ऑडीशन-वेन्यू का दरवाज़ा सजा हुआ करता था, अंदर बंद शीशे और सेंट्रल ए.सी. की ठंडक में भी हवस की गर्मी सी बनी रहती थी। कुछ इंटरवयू लेने वालों की नज़रें पैरों से होती हुईं, पूरा जिस्म ताकतीं, फिर मुंह बनाकर कह देतीं - फेसकट अच्छा नहीं है, अभिनय का अनुभव नहीं है, वो बात नहीं है, ये बात नहीं है! वगैरह-वगैरह !
आखिरकार एक दिन तुमने मुझपर एहसान कर ही दिया। तब मुझे ये मेरी जि़ंदगी का सबसे बड़ा चमत्कार ही लगा। सदी के महानायक के साथ काम करने का ऑफर मिला। सुकून भी उस अजनबी मेहमान की तरह हैं, जो घंटों पड़ोस वाली गली में भटकता रहता है और अचानक उसे कोई सही रास्ता, सही घर, और सही शख्स तक पहुंचा देता है ! अब मन इतना खुश था कि इसे फिक्र ही नहीं थी कि जि़ंदगी महज़ एकाध फिल्मों की किताब नहीं ! पहली ही फिल्म के सहारे बॉलीवुड पर सवार होने की ललक और दरवाज़े पर स्टार्डम की दस्तक सुनाई देने लगी थी। जैसे-तैसे फिल्म पूरी हुई, लोगों के लबों पे मेरा नाम चढ़ने लगा ! मीडिया और फिल्म क्रिटिकों ने मेरे अभिनय की तारीफें कीं, पर अभी भी कुछ बाकी था ! शायद बहुत कुछ ! फिर कारवां चल निकला था। आगे चलकर दो बड़े स्टारों के साथ काम करने का हसीं मौका भी हाथ लगा !
फिर अचानक सफलता की फुलवारी में वीरानी सी छाने लगी ! कई हीरोइनें सौ करोड़ी क्लब और लव-अफेयर्स की बदौलत मीडिया के मुंह लगीं रहीं। मैंने सादगी और मेहनत को ही अपना भगवान माना था। मुझे क्या पता, कि 120 करोड़ की आबादी में अपनी पहुंच बनाये रखने के लिए अफेयर्स और पार्टी-मटरगस्ती भी बेहद ज़रूरी है। मैंने नायकों को को-स्टार का दर्जा दिया और फिल्मों को अपने शौक और प्रोफेशन का ! शायद मेरा ज़मीर भी इसी में खुश था। पर खुशी और खुशकिस्मती दो अलग बातें हैं। निर्माता-निर्देशकों ने मेरे अभिनय और जुनून को इग्नोर कर दिया! दरअसल स्टार्डम और ग्लेमर की गाली-गलौज से मुझे परहेज़ था और न जाने क्यूं सादगी और शराफत का पंक्षी ज़ीरो-फिगर और सेक्ससिंबल के पिंजड़े में कैद नहीं हो सका !
आज बात और जज़्बात सबकुछ मुझसे कहीं दूर चले गए है !तुम्हारी शर्त, तुम्हारे इरादे, तुम्हारे गाइडेंस से अब मैं थक सी गई हूं ! ग्लेमर की गांधीगीरी और शोहरत की शैतानियां अब मुझे जीने से रोक रहीं हैं ! तुम्हारा टर्नओवर कई गुणा बढ़ता रहे, मेरे जैसी सभी सफल, कम सफल या बेहद कम सफल हीरोइनों से मेरी गुज़ारिश है कि कपड़े भले ही छोटे कर लें, पर मेरी तरह अपना दिल छोटा न करें ! वाहवाही और पाॅजिटिव समीक्षाओं से जि़ंदगी की फिल्म सफल नहीं होती ! दिल और दामन के पर्दे अभी उतने बड़े और स्टारछाप नहीं हुए हैं, कि इसमें हर ज़ख्म, हर दर्द, फिल्मों की तरह हैप्पी एंडिंग होता चला जाए ! आज अपनों से दूर और दुश्मनों से छुटकारा पाकर एक नई फिल्म का आइडिया छोड़ कर जा रही हूं ! पता नहीं फिल्म क्रिटिक्स इसे कितने स्टार देंगे .......?
- जि़ंदादिल जिया खान !
sruhad shradanjali
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