Saturday 25 May 2013


जज़्बातों को फिल्मी न होने दें !


आशिक और आशिकी के बीच दुनिया ने एक ऐसी दीवार बना रखी है, जिस पर लिख दिया गया है कि आप या तो मुहब्बत ही कर पाएंगे या फिर जि़ंदगी में सफल ही हो पाएंगे ! इश्क की शुरुआत जज़्बातों से होकर जि़द तक जा पहुंचती है, पर जब तक इज़हार का अंदाज़ फिल्मी और दिखावटी रहेगा, आप हसीन लम्हों को यादगार बनाने से चूकते रहेंगे। 

कितना मुश्किल है इश्क हो जाने के बाद उसे छिपाये रखना ..! ठीक उसी तरह, जैसे आपने किसी के साथ सीरियस-मज़ाक किया हो और फिर आप खुद को बेकसूर साबित करने के लिए उसे समझाए जा रहे हैं! यहां समझाने वाले आप खुद हैं, और समझने वाला दिल ! अक्सर दिल और दिमाग, ’लेफ्ट-राइट’ गेम खेलते रहते हैं ! दिमाग में फयूचर हाॅरर और दिल में प्रिज़ेंट प्लेज़र। दिमाग में टैंशन का टशन और दिल में दिलेरी के दिलासे ! ये  दिमाग उस बांध की तरह है, जो एक हद तक लहरें रोकने की ताकत रखता है। पर दिल की तूफानी लहरें, जब होश-ओ-हवास खोकर दौड़ीं चली आती हैं, फिर दिमाग का बांध टूट जाता है। दिल खुद को जीता हुआ और दिमाग कुछ दिनों के लिए हारा हुआ सा महसूस करने लगता है। 
हालिया फिल्म आशिकी 2 का डाॅयलाॅग - ’’मुहब्ब्त, प्यार, इश्क लफजों के सिवाय और कुछ नहीं, बस किसी स्पेशल के मिल जाने के बाद इन शब्दों को मायने मिल जाते हैं।’’  फिल्मों से लेकर फरिश्तों की कहानियों तक में इश्क और इज़हार के बीच गहरा रिश्ता रहा है। इस आधुनिक जि़ंदगी में इज़हार को हम ’प्रपोज़’ कहने लगे हैं। दिल के लिए ’प्रपोज़’ शब्द एक ’मीडिया’ है। ऐसा मीडिया जो ब्रेक लेकर दिल के प्रोग्राम सामने वाले को सामने जाकर पेश कर देता है। प्रपोज़ करने के बाद का ’डिसीज़न’ टीआरपी रेटिंग की तरह है। यदि आपका प्रोग्राम अच्छा रहा, तो हाइ-टीआरपी, वरना ’नाॅट नाउ’ का ज़बर्दस्त फ्लाॅप शो। क्यूं न प्यार को इज़हार की शक्ल कुछ इस तरह दी जाए कि वह ना सिर्फ यादगार रहे, साथ ही आपकी लव लाइफ में अभी तक के शानदार लम्हों में शामिल हो जाए ! ठीक वैसा ही जैसा रितिक-सोनिया ने किया। 
काॅलेज में रितिक का सपना सिर्फ किताबें और कॅरिअर था। उसकी आंखों में गर्लफ्रेंड या लवर सर्च करने की ना तो ख्वाहिश थी और न ही इंट्रेस्ट। अपनी स्टडी को ही उसने फ्रेंड और सक्सेज़ को ही अपनी गर्लफ्रेंड बनाने का फैंसला किया था। अक्सर उसकी बातें लोगों के चेहरों पर मुस्कराहट ला दिया करतीं थीं। हंसमुख नेचर होना वाकई शानदार साबित होता है। आप रूठों को चुटकियों में मना सकते हैं, अजनबियों को अपना बना सकते हैं। दरअसल दुनिया में कुछ मिथ बन गए हैं, जिनमें से एक यह कि, लव-लाइफ, स्टडी को स्पाॅयल कर देती है। रितिक अक्सर दोस्तों को इस टाॅपिक पर ऐक्सप्लेनेशन देना शुरु कर देता था। मानो वह लवलाइफ से नहंी, अपने विचारों और एटीट्यूड से बहस कर रहा है। रितिक सैकंड ईयर स्टूडेंट था, और जल्द ही माॅस कम्युनिकेशन कोर्स की उड़ान उसे थर्ड ईयर की ’मीडिया-मिस्ट्री’ में भेजने वाली थी। उसके पास ब्राण्डेड ऐक्ससरीज़, बाइक, बाइसेप्स जैसे इंप्रेसिव फीचर्स नहंी थे। दूसरों को हंसाने-गुदगुदाने की चाहत ही उसकी लाइफ का अभी तक का अचीवमेंट था। कुछ दिनों बाद उसके फ्रंेड-सर्कल में सोनिया एंट्री करती है। बात और जज़्बात कब जि़द बन जाएं, कहना मुश्किल है। दोस्ती से होकर अपनेपन की यह सुरंग, इश्क के दरवाज़े तक ले जाएगी, रितिक ने सोचा भी न था। 
इज़हार का सफर अभी दूर था। रितिक और सोनिया दोनों के फोन नंबर्स ऐक्सचेंज हुए। ’गुड-माॅर्निग’, ’गुडनाइट’, ’टेक केयर’ जैसे शब्दों में वाकई जादू सा होता है। यदि नियम से कोई आपकी फिक्र करे, तो आपका दिल ज़ोरों से धड़कना शुरु कर देता है और दिमाग ज़ोरों से डांटना। ठीक ऐसा ही रितिक के साथ हो रहा था। खाली समय में वह खुद को सोनिया का ’सिर्फ दोस्त’ कहते हुए दिलासे देता रहता, और जैसे ही फोन में मैसेज या काॅल टयून बजती, झट से ओके कर आंखें गढ़ा देता। दो महीने, दिल और दिलासों का खेल चलता रहा। रितिक-सोनिया मिलते रहे, बात ’गुड माॅर्निंग’ में लिपटी हुई, अब ’लंच कर लेना’, ’डिनर कर लेना’ जैसे मैसेजों तक जा पहुंची थी। कितना बेहतरीन मौका होता है न, जब कोई आपसे रोज़ ऐसी बातें कहे, जिसे सुनकर, खुद को कंट्राॅल करने की कोशिशें करनी पड़ें। 
फाइनली, रितिक को रियालाइज़ हुआ कि सोनिया और वह, इश्क के दो मोती हैं, जो जल्द ही एक माला में बंधना चाहते हैं। लाइफ और लव लाइफ में ज़रा सा अंतर है। यहां सिर्फ हाइ-हलो, बाइ-गुडबाइ नहंी, जि़म्मेदारी और प्यार की भी भरपूर ज़रूरत है। फिलहाल रितिक ने सोनिया को अपने दिल की बात कहने का डिसीज़न लिया। हालांकि यह सब उसने तभी सोचा जब उसे विश्वास हो चुका था कि सोनिया भी उससे उतना ही प्यार करती है। 
अगले दिन काॅलेज पार्टी में दोनों मिले, कुछ बातें हुईं, और फिर एक ऐसा मौका, जिसे हम यूथ ’प्रपोज़ल’ कहते हैं पर रितिक-सोनिया के लिए यह एक बेहद हसीन पल था। प्रपोज़ करते हुए एक गलती कभी नहीं करनी चाहिए जो रोहित ने नहीं की। यादगार प्रपोज़ल में फिल्मी-नकल करना थोड़ा ड्रामेटिक फील करवा सकता है। इश्क बयां करना एक ऐसा पल साबित होता है, जिसकी याद मुश्किल से ही कभी धुंधली पड़ती है। ऐसे में यदि आप ज़रा भी ओवर-क्रिएटिव या फिल्मी अंदाज़ निभाने में रहे, तो बात बिगड़े भले ही न, पर खूबसूरती और सादगी गायब हो जाने का डर रहता है। रितिक ने सोनिया का हाथ थामा, और बड़ी शिददत से पुरानी बातों के सूटकेस में दिल की नई बात शानदार जज्बातों की पैकिंग के साथ रखकर उसे गिफट कर दीं। सोनिया ने भी स्माइल करते हुए, उसे ’आइ लव यू टू’ कह दिया! प्रपोज़ल सिंपल पर शानदार था। दिल की बातें सीधे कहना भी मुश्किल है, और घुमाकर कहना भी एक कला। सादगी और अपनेपन का ऐसा काॅकटेल आपकी  जि़ंदगी को खुशियों से भर सकता है। आज रितिक और सोनिया दोनों एक-दूसरे को अच्छे से समझते हैं। वे हैरान और परेशान होकर ठहाके भी लगाते हैं कि इश्क कितना चालांक और खुशनसीब है कि उसने अनऐक्सपेक्टिड को भी ऐक्सपेक्टिड कर दिखाया। 
ये तो हुई रितिक-सोनिया लव स्टोरी, अब बारी प्रपोज़ल और उसकी इंपाॅर्टेंस की। दरअसल फिल्में असल जि़ंदगियों से ही बनाईं जाती हैं। क्यूं न दिखावटीपन और नकल को एक तरफ रख, रिलेशनसिप को सादगी और खूबसूरती से एंज्वाॅय किया जाए ! मशहूर लेखक शिव खेड़ा ने एक बार कहा था- ’’जीतने वाले कोई अलग काम नहंी करते, वे हर काम अलग ढंग से करते हैं।’’ याद रखिए प्यार जि़ंदगी भले ही न हो, पर जि़ंदगी का ऐसा हिस्सा है, जिसे इग्नोर नहंी किया जा सकता। हिफाज़त और अपनेपन की मीठी बोलियां, जब दुनियादारी की इस भागमभाग में दिल को सुनाई देतीं हैं, तो वह सबकुछ छोड़कर उन्हें  हमेशा के लिए पाने की कोशिश में लग जाता है। दो बेहद ज़रूरी बातें, फयूचर स्ट्रगल यानि स्टडी और लव लाइफ में बैलेंस। सक्सेज़, लव लाइफ में ही नहीं आपकी लाइफ में भी होनी चाहिए। क्यूं न आज दो मिथों को तोड़कर बदल दिया जाए ? एक, कि लाइफ-लवलाइफ को बैलेंस रख कर, बिना किसी प्राॅब्लम के सक्सेज़ के रास्ते तलाशे जा सकते हैं और दूसरा, लव प्रपोज़ल को फिल्मी नकल के धागे से न बांधकर, अपने अंदाज़ में अपनाया जाए।
 जो आप हैं, वह आप ही कर सकते हैं, और जो आप नहंी हैं, बेहतर है उसे करने की कोशिश तो दूर, उस बारे में सोचें भी नहीं। फिलहाल इश्क और प्रपोज़ल का यह लेख खत्म हो रहा है, पर आखिरी शब्दों में एक चेतावनी ज़रूर कि लाइफ और लव को साथ लेकर चलने में बुराई नहंी है, बस डर बना रहता है कि आप अपनी मंजिल से भटकें नहंी, बाकी सुख हो या दुख, आपके साथ कोई है, जो हर वक्त, हर लम्हा, पलकें बिछाए आपके सपनों को अपने सपने बनाने के लिए बेताब है। आफटरआॅल लाइफ इज़ टू एंज्वाॅय, नाॅट टू स्पाॅयल ... डियर ! 



1 comment:

  1. जी आपने यह कैसे सोच लिया कि मैं सकारात्‍मक प्रति्क्रियाओं के लिए ही ब्‍लॉग बनाकर बैठा हूं। भई। ब्‍लॉग बनाने का उददेश्‍य जितना अभिव्‍यक्ति से है उतना ही आत्‍म-सुधार से भी है। आपकी बात से शत-प्रतिशत सहमत। पर दरअसल यह सच्‍ची घटना थी, मेरे जीवन की सो इसमें जरा भाव-विभोर होकर डूबता चला गया।
    शुक्रिया ।

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