Monday 20 May 2013


आईपीऐल के दलदल में क्रिकेट का कमल


आईपीऐल में स्पॉट फिक्सिंग-फसाद से ज्यादा हैरानी इस बात की है कि श्रीसंत जैसा काबिल खिलाड़ी भी इस दलदल में खुद को साफ-सुथरा नहीं रख पाया। आईपीएल के ढांचे में जल्द बदलाव करने की ज़रूरत है, कहीं ऐसा न हो कि क्रिकेट के नाम पर हम घंटों उस खेल को टकटकी बांधकर देखते रहें, जिसकी जीत-हार पहले से ही तय थी!

आईपीएल पर फिक्सिंग के छींटे ! एक नामी न्यूज़ चैनल का फलैश। देखकर ज़रा भी हैरानी नहीं हुई, पर फलैश की दूसरी लाइन ’श्रींसंत समेत तीन खिलाड़ी गिरफ्तार, जांच जारी!’ पर नज़र पड़ते ही अगला चैनल ट्यून करने को बेताब उंगलियां ठहर गईं। क्रिकेट का डाइ-हार्ट फेन न होते हुए भी इस खबर को घंटों चैनल बदल-बदल कर जानने-समझने-परखने की कोशिश करता रहा। तथ्य, तस्वीरें और तफतीश की उधेड़बुन जारी थी। कहीं क्रिकेट ऐक्सपर्ट गर्मजोशी से अपना बयान दर्ज करवा रहे थे, तो शिल्पा शेट्टी अपनी टीम राजस्थान राॅयल्स की सफाई, बेहद सफाई से दे रहीं थीं। दरअसल आईपीएल के पिछले कुछ मैचों में श्रीसंत, अजित चंडीला और अंकित चव्हाण पर स्पॉट फिक्सिंग के गंभीर आरोप सामने आए हैं।
आईपीऐल को क्रिकेट मैच का आयोजन कहते हुए अक्सर झिझक महसूस हुआ करती थी, पर अब तो धिक्कार सा होने लगा है। खुल्लम-खुल्ला सट्टेबाजी, शोहरत की बेशुमार ’बैटिंग’, ने खेल की शराफत का गला घोंट दिया है। आईपीऐल में सिर्फ फिक्सिंग का छिटपुट मामला होता, तो शायद मैं इस पर लिखने की न सोचता, पर श्रीसंत जैसे हुनरमंद और काबिल खिलाड़ी पर लगे आरोप ने वाकई देश के सक्रिय नागरिकों को झकझोर दिया है। वक्त इस बहस में पड़ने का नहीं है कि फिक्सिंग कैसे हुई, और कौन मुख्य किरदार में है ? ज़ोर देने की ज़रूरत इस बात पर है कि किन कदमों को उठाकर हम आईपीएल जैसे मनोरंजक और शोहरत-विशेष आयोजनों में शराफत और सच्ची खेल-भावना बरकरार रख सकते हैं ?
तेज़ दिमाग के मध्यम-तेज़ गेंदबाज़ ऐस. श्रीसंत का नाम भारतीय टीम के होनहार और उम्दा गेंदबाज़ों में लिया जाता है। कुछेक अपवादों को नज़रंदाज़ कर दें तो साफ-सुथरी छवि उनकी पहचान रही है। आईपीएल फाॅर्मेट में टीमें बनाई तो जातीं हैं, पर ज़मीनी तौर पर बैटिंग टीम के मालिकान और उनके ’इरादे’ ही करते हैं। जैसे ही ये ’इरादे’ डगमगाते हैं, खेल का ’खेल’ बिगड़ने लगता है और फिक्सिंग के फसाने पैदा होने लगते हैं। अब बात टीम से शुरु हुई है, तो एक नज़र 2008 की पहली आईपीएल विजेता टीम राजस्थान राॅयल्स के रिपोर्ट कार्ड पर। प्वाइंट टेबल में मुंबई और राजस्थान के बीच दूसरे स्थान के लिए कश्मकश जारी थी। दोनों टीमें प्लेआॅफ में जगह पक्की कर चुकीं थी। ज़ाहिर तौर पर लक्ष्य पहले स्थान पर पहुंचने का था। टीम के बूस्ट प्लेयर श्रीसंत समेत तीनों खिलाडि़यों पर आरोप है कि उन्होंने बुकी के इशारे पर नोबाॅल, डेडबाॅल डालकर खेल और उसके मायनों को चोट पहुंचाई।
खिलाडि़यों पर आईपीऐल-फिक्सिंग के छींटे जैसी बात से हैरान होना ठीक उसी तरह है जैसे कोई कमल तोड़कर लाए और आप उसके पैरों में कीचड़ न लगे होने की उम्मीद करें। श्रीसंत केरेला के पहले रणजी खिलाड़ी हैं, जिन्हें सीधे भारतीय टीम में 20-20 खेलने का मौका मिला। अपने शानदार कॅरिअर में उन्होंने 27 टैस्ट मैचों में 87 विकेट और 53 वन-डे मैचों में 75 विकेट झटके है। श्रीसंत केरल के अकेले ऐसे गेंदबाज रहे हैं, जिन्होंने रणजी ट्राॅफी में हैट्रिक ली है। 2008 में हरभजन सिंह के साथ उनके संबंधों में ज़रूर कुछ खटास रही, पर उन्होंने मामले को खेल के मायनों से ज्यादा तवज्जो नहीं दी। उनकी मध्यम-तेज़ गति गेंदबाज़ी ने मैदान में विपक्षी टीम के बल्लेबाज़ों को अक्सर हैरत में डाला है। जहां तक कप्तान धोनी से मतभेद की बातें उछली है, तो व्यवहारिक तौर पर कभी-कभार खिलाडि़यों और कप्तान के बीच मसलों पर सहमति-असहमति का मन-मुटाव रहता ही है। सच तो यह है कि आईपीऐल में जिस खिलाड़ी ने रुपए-पैसों की चिंता नहंी की, वह बेहतर प्रदर्शन करने के बावजूद भी घाटे में ही रहेगा। पर यहां घाटे से मतलब ऐसे साॅल्यूशन से कतई नहीं है जैसा श्रीसंत व बाकी दो खिलाडि़यों ने अपनाया।
यदि हमारा हिंदी शब्दकोश उदार होता, तो अब तक आईपीएल और विवाद शब्द पर्यायवाची बन चुके होते। 2008 से लेकर अभी तक एक भी आयोजन साफ-सुथरा और शांतिपूर्ण नहीं रहा। बीते साल 5 खिलाडि़यों पर फिक्सिंग के आरोप सही साबित हुए थे, पर तब भी बात बहस और बयानों के आए-गए विस्फोट की तरह रह गई। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने श्रीसंत को अपने दोस्त के यहां से और बाकी दो खिलाडि़यों को टीम के नरीमन हाउस होटल से हिरासत में लिया है। आरोपियों पर आईपीसी के 420 और 120 बी के तहत केस फाइल करने की तैयारी है। साथ ही सबूत जुटाने में जुटी दिल्ली पुलिस अब बुकी के तमाम आला नटवरों की तलाश में ताबड़तोड़ छापेमारी कर रही है। दोष का दरवाज़ा सिर्फ खिलाडि़यों तक ही नहंी खुलता, असली गुनाहगार तो बुकियों का देशभर में फैला ज़बर्दस्त नेटवर्क है, जो लालच और शोहरत की चकाचैंध से खेल और उसके सम्मान को अंधेरे में ले जा रहा है।
हमेशा की तरह दोषी खिलाडि़यों की आधिकारिक टीमों ने आरोपों से अपना दामन बचा लिया है। पुलिस जांच-पड़ताल कर दागी चेहरों को सामने लाने की भरपूर कोशिश में है। चर्चा है कि दोषी पाए जाने पर खिलाडि़यों पर आजीवन वैन लगेगा, व उन्हें सख्त सजा होगी, पर इससे भी ज्यादा ज़रूरी है कि मामले की जड़ तलाशी जाए। जब तक   कैंसर जैसे जानलेवा रोग को पेनकिलर या डिस्प्रिन जैसी दवाओं से खत्म करने की कोशिशें होतीं रहेंगी, रोग बढ़ता ही जाएगा। आज श्रीसंत, कल कोई और धीरे-धीरे हमारी पहचान, सम्मान और संस्कृति का खेल क्रिकेट, फिक्स-गेम की शक्ल ले लेगा। फिर जीतना-हारना ही सबकुछ होगा। देश और उसकी भावनाओं पर चोट कर जिन लालची और नोट के भूखों ने यह मोहजाल बिछाया है, उनकी हवेलियां बनेंगी, और संस्कार और उसूलों की इमारतें ढहतीं चलीं जाएंगी।
बहुत कम वक्त बचा है इस खेल को वापस उसकी पहचान और सम्मान दिलाने का। आईपीऐल की शुरुआत खिलाडि़यों के विकास और दर्शकों के मनोरंजन के लिए हुई थी, न कि खेल और खिलाडि़यों की अवैध सौदेबाज़ी-सट्टेबाजी के लिए। शोहरत और शराफत की इस जंग में क्रिकेट अब कराह रहा है। हर किसी को शक होने लगा है कि जिस्म दिखातीं चीयरलीडर्स के पीठ पीछे कैसे मैच मालिकान करोड़ों-अरबों के वारे-न्यारे करते हैं। आईपीऐल को आगे भी यदि जारी रखना है तो कायदे-कानून को कड़े करने होंगे। सिर्फ मनोरंजन का वास्ता देकर आप दर्शकों को धोखे में नहंी रख सकते। देश जानना चाहता है कि कौन, कैसे, और क्यूं खेल की भावनाओं को नोटों की गडिडयों के नीचे कुचलना चाहता है। फिलहाल मामले की जांच जारी है, नतीज़ा सामने आना बेहद ज़रूरी है। आईपीएल के ढांचे में जल्द ही बदलाव करने की ज़रूरत है, कहीं ऐसा न हो कि क्रिकेट के नाम पर हम घंटों उस खेल को टकटकी बांधकर देखते रहें, जिसकी जीत-हार पहले से ही तय थी।

         

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